उत्तराखण्ड में नौकरी हथियाने के लिए बेईमानी का सहारा
उत्तराखण्ड में अधिकारियों की मिलीभगत से नौकरी हथियाने के लिए बेईमानी का सहारा
उत्तराखण्ड में तीन सौ से भी अधिक बीएड प्रशिक्षितों ने बेईमानी का सहारा लिया और दो-दो जगह के स्थायी निवास प्रमाण पत्रों के आधार पर नौकरी हथियाने का मामला सामने आया है जबकि वन विभाग के लैंसडोन प्रभाग में तीन साल पहले चतुर्थ श्रेणी के पदों पर हुई नियुक्तियों का काला सच अब सामने आया है। इन पदों पर मानकों को धत्ता बताकर न केवल यूपी के मूल निवासियों को नियुक्ति दी गई, बल्कि आरक्षित पदों पर भी सामान्य वर्ग के के अभ्यर्थी नियुक्ति पा गए।
वर्ष 2009 में विभाग ने चतुर्थ श्रेणी पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की। भर्ती में सबसे पहली शर्त भी कि अभ्यर्थी मूल रूप से उत्तराखंड का निवासी होना चाहिए। एससी के लिए आरक्षित पदों पर जाति प्रमाण पत्र वाले ही आवेदन कर पाएंगे।
लैंसडोन वन प्रभाग में तब हुई नियुक्तियों में अनियमितता की शिकायतें भी आई, लेकिन अफसर पूरे मामले पर पर्दा डाल गए। अब इसकी परतें उधड़ कर सामने आ रही हैं। सूत्रों के अनुसार तब आरक्षित पद पर नौकरी पाने वालों में से एक ने यूपी का बना जाति प्रमाण पत्र जमा कराया था, उसी आधार पर उसका चयन कर लिया गया। उसके प्रमाण पत्र में मूल पता लालबाग गांधी कॉलोनी, मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश लिखा गया है। इतना ही नहीं, दो अन्य को बगैर जाति प्रमाण पत्र के बगैर ही आरक्षित पदों पर नियुक्ति दे दी गई। सूत्रों के मुताबिक आला अधिकारियों ने इस मामले में गोपनीय जांच भी की, लेकिन एक अधिकारी ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर मामले पर पर्दा डलवा दिया।
सनातन, डीएफओ हरिद्वार का कहना है कि ‘लैंसडोन से आए कुछ वनकर्मियों के खिलाफ शिकायत आई है कि उनके दस्तावेज सही नहीं हैं। इस बारे में लैंसडोन वन प्रभाग से सूचना मांगी जा रही है।’
डीबीएस खाती, मुख्य वन संरक्षक, उत्तराखंड वन विभाग का कहना है कि’अगर इस तरह की शिकायतें हैं, तो वह भर्ती किए गए वनकर्मियों के दस्तावेजों की जांच कराएंगे। दोषी के खिलाफ कार्रवाई होगी’
वहीं दूसरी ओर दोहरे स्थायी निवास प्रमाण पत्र के आधार पर बीएड प्रशिक्षितों को मिली नियुक्ति नियुक्ति प्रक्रिया सवालों के घेरे में आ गयी है, इसमें विशिष्ट बीटीसी के 2253 पदों का मामला है, समाचार पत्रों की रिपोर्ट के अनुसार नौकरी हथियाने के लिए उत्तराखण्ड में तीन सौ से भी अधिक बीएड प्रशिक्षितों ने बेईमानी का सहारा लिया और दो-दो जगह के स्थायी निवास प्रमाण पत्रों के आधार पर नौकरी हथिया ली। इस कारण स्थानीय व योग्य अभ्यर्थियों को रोजगार नहीं मिल सका। इस फर्जीवाड़े का खुलासा टीईटी परीक्षा प्रमाणपत्रों की जांच के आधार पर हुआ है। इन अभ्यर्थियों ने टीईटी की परीक्षा देते समय वर्तमान जनपद का स्थायी निवास प्रमाणपत्र लगाया है, जबकि बाद में अधिक पद वाले अपने मूल जनपद का स्थायी निवास प्रमाणपत्र लगा दिया है। राज्य सरकार इन दिनों विशिष्ट बीटीसी के 2253 पदों के लिए काउंसिलिंग कर रही है, लेकिन यह प्रक्रिया सवालों के घेरे में है। कई चयनित शिक्षक ऐसे हैं जिनके पास दो-दो स्थायी निवास प्रमाण पत्र हैं। राज्य सरकार ने बीएड प्रशिक्षितों के लिए टीईटी परीक्षा अनिवार्य कर दी है। इसके बाद पिछले वर्ष विद्यालयी शिक्षा परिषद टीईटी की परीक्षा करा चुकी है। इस परीक्षा के समय स्थायी निवास प्रमाणपत्र को जरूरी दस्तावेज के रूप में शामिल किया जाना था। परीक्षा में 40 हजार से अधिक अभ्यर्थी पास हुए। शिक्षा निदेशालय ने 2253 अध्यापकों को नियुक्त करने के लिए जनपदवार रिक्तियां निकाली थी। इसके बाद टीईटी पास अभ्यर्थियों में जिस जनपद में अधिक पद हैं, वहां का स्थायी निवास प्रमाणपत्र बनाने की होड़ मच गई और कई लोगों ने अपने मूल गांव के आधार पर स्थायी निवास प्रमाणपत्र हासिल भी कर लिया। अब इन लोगों का चयन भी हो गया है। जिला शिक्षाधिकारियों से मिल रही जानकारी के अनुसार राज्य भर में 300 से 500 तक अभ्यर्थियों ने दोहरे स्थायी निवास प्रमाणपत्र के आधार पर नियुक्ति पा ली है। अकेले अल्मोड़ा में सौ से अधिक लोगों का दोहरे प्रमाणपत्र के आधार पर चयन हुआ है। यह जानकारी अल्मोड़ा के डीईओ को भी है। इसी कारण काउंसिलिंग के समय इन अभ्यर्थियों से एक स्थायी निवास प्रमाणपत्र सरेंडर करने को कहा गया है। उल्लेखनीय है कि अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर, चंपावत से हजारों लोग प्रतिवर्ष हल्द्वानी या दूसरे तराई के इलाकों में बस रहे हैं। इन लोगों की पहाड़ों में भी पैतृक संपत्ति है। इसी का लाभ उठाते हुए टीईटी उत्तीर्ण हजारों अभ्यर्थियों ने टीईटी परीक्षा में तो नैनीताल, रुद्रपुर का स्थायी निवास प्रमाण लगाया और अब विशिष्ट बीटीसी में नियुक्ति के लिए अपने मूल जनपद का स्थायी प्रमाणपत्र लगा दिया है। इस मामले में सबसे रोचक तथ्य यह आया है कि कुछ लोगों द्वारा दोहरे स्थायी निवास प्रमाणपत्र बनवाने के कारण असली मूल निवासी सैकड़ों योग्य अभ्यर्थी चयन होने से वंचित रह गए हैं। अब ये लोग उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की सोच रहे हैं।
उत्तराखण्ड में अधिकारियों की मिलीभगत से नौकरी हथियाने के लिए बेईमानी का सहारा
उत्तराखण्ड में तीन सौ से भी अधिक बीएड प्रशिक्षितों ने बेईमानी का सहारा लिया और दो-दो जगह के स्थायी निवास प्रमाण पत्रों के आधार पर नौकरी हथियाने का मामला सामने आया है जबकि वन विभाग के लैंसडोन प्रभाग में तीन साल पहले चतुर्थ श्रेणी के पदों पर हुई नियुक्तियों का काला सच अब सामने आया है। इन पदों पर मानकों को धत्ता बताकर न केवल यूपी के मूल निवासियों को नियुक्ति दी गई, बल्कि आरक्षित पदों पर भी सामान्य वर्ग के के अभ्यर्थी नियुक्ति पा गए।
वर्ष 2009 में विभाग ने चतुर्थ श्रेणी पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की। भर्ती में सबसे पहली शर्त भी कि अभ्यर्थी मूल रूप से उत्तराखंड का निवासी होना चाहिए। एससी के लिए आरक्षित पदों पर जाति प्रमाण पत्र वाले ही आवेदन कर पाएंगे।
लैंसडोन वन प्रभाग में तब हुई नियुक्तियों में अनियमितता की शिकायतें भी आई, लेकिन अफसर पूरे मामले पर पर्दा डाल गए। अब इसकी परतें उधड़ कर सामने आ रही हैं। सूत्रों के अनुसार तब आरक्षित पद पर नौकरी पाने वालों में से एक ने यूपी का बना जाति प्रमाण पत्र जमा कराया था, उसी आधार पर उसका चयन कर लिया गया। उसके प्रमाण पत्र में मूल पता लालबाग गांधी कॉलोनी, मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश लिखा गया है। इतना ही नहीं, दो अन्य को बगैर जाति प्रमाण पत्र के बगैर ही आरक्षित पदों पर नियुक्ति दे दी गई। सूत्रों के मुताबिक आला अधिकारियों ने इस मामले में गोपनीय जांच भी की, लेकिन एक अधिकारी ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर मामले पर पर्दा डलवा दिया।
सनातन, डीएफओ हरिद्वार का कहना है कि ‘लैंसडोन से आए कुछ वनकर्मियों के खिलाफ शिकायत आई है कि उनके दस्तावेज सही नहीं हैं। इस बारे में लैंसडोन वन प्रभाग से सूचना मांगी जा रही है।’
डीबीएस खाती, मुख्य वन संरक्षक, उत्तराखंड वन विभाग का कहना है कि’अगर इस तरह की शिकायतें हैं, तो वह भर्ती किए गए वनकर्मियों के दस्तावेजों की जांच कराएंगे। दोषी के खिलाफ कार्रवाई होगी’
वहीं दूसरी ओर दोहरे स्थायी निवास प्रमाण पत्र के आधार पर बीएड प्रशिक्षितों को मिली नियुक्ति नियुक्ति प्रक्रिया सवालों के घेरे में आ गयी है, इसमें विशिष्ट बीटीसी के 2253 पदों का मामला है, समाचार पत्रों की रिपोर्ट के अनुसार नौकरी हथियाने के लिए उत्तराखण्ड में तीन सौ से भी अधिक बीएड प्रशिक्षितों ने बेईमानी का सहारा लिया और दो-दो जगह के स्थायी निवास प्रमाण पत्रों के आधार पर नौकरी हथिया ली। इस कारण स्थानीय व योग्य अभ्यर्थियों को रोजगार नहीं मिल सका। इस फर्जीवाड़े का खुलासा टीईटी परीक्षा प्रमाणपत्रों की जांच के आधार पर हुआ है। इन अभ्यर्थियों ने टीईटी की परीक्षा देते समय वर्तमान जनपद का स्थायी निवास प्रमाणपत्र लगाया है, जबकि बाद में अधिक पद वाले अपने मूल जनपद का स्थायी निवास प्रमाणपत्र लगा दिया है। राज्य सरकार इन दिनों विशिष्ट बीटीसी के 2253 पदों के लिए काउंसिलिंग कर रही है, लेकिन यह प्रक्रिया सवालों के घेरे में है। कई चयनित शिक्षक ऐसे हैं जिनके पास दो-दो स्थायी निवास प्रमाण पत्र हैं। राज्य सरकार ने बीएड प्रशिक्षितों के लिए टीईटी परीक्षा अनिवार्य कर दी है। इसके बाद पिछले वर्ष विद्यालयी शिक्षा परिषद टीईटी की परीक्षा करा चुकी है। इस परीक्षा के समय स्थायी निवास प्रमाणपत्र को जरूरी दस्तावेज के रूप में शामिल किया जाना था। परीक्षा में 40 हजार से अधिक अभ्यर्थी पास हुए। शिक्षा निदेशालय ने 2253 अध्यापकों को नियुक्त करने के लिए जनपदवार रिक्तियां निकाली थी। इसके बाद टीईटी पास अभ्यर्थियों में जिस जनपद में अधिक पद हैं, वहां का स्थायी निवास प्रमाणपत्र बनाने की होड़ मच गई और कई लोगों ने अपने मूल गांव के आधार पर स्थायी निवास प्रमाणपत्र हासिल भी कर लिया। अब इन लोगों का चयन भी हो गया है। जिला शिक्षाधिकारियों से मिल रही जानकारी के अनुसार राज्य भर में 300 से 500 तक अभ्यर्थियों ने दोहरे स्थायी निवास प्रमाणपत्र के आधार पर नियुक्ति पा ली है। अकेले अल्मोड़ा में सौ से अधिक लोगों का दोहरे प्रमाणपत्र के आधार पर चयन हुआ है। यह जानकारी अल्मोड़ा के डीईओ को भी है। इसी कारण काउंसिलिंग के समय इन अभ्यर्थियों से एक स्थायी निवास प्रमाणपत्र सरेंडर करने को कहा गया है। उल्लेखनीय है कि अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर, चंपावत से हजारों लोग प्रतिवर्ष हल्द्वानी या दूसरे तराई के इलाकों में बस रहे हैं। इन लोगों की पहाड़ों में भी पैतृक संपत्ति है। इसी का लाभ उठाते हुए टीईटी उत्तीर्ण हजारों अभ्यर्थियों ने टीईटी परीक्षा में तो नैनीताल, रुद्रपुर का स्थायी निवास प्रमाण लगाया और अब विशिष्ट बीटीसी में नियुक्ति के लिए अपने मूल जनपद का स्थायी प्रमाणपत्र लगा दिया है। इस मामले में सबसे रोचक तथ्य यह आया है कि कुछ लोगों द्वारा दोहरे स्थायी निवास प्रमाणपत्र बनवाने के कारण असली मूल निवासी सैकड़ों योग्य अभ्यर्थी चयन होने से वंचित रह गए हैं। अब ये लोग उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की सोच रहे हैं।
CTET, TEACHER ELIGIBILITY TEST (TET), NCTE, RTE, UPTET, HTET, JTET / Jharkhand TET, OTET / Odisha TET ,
Rajasthan TET / RTET, BETET / Bihar TET, PSTET / Punjab State Teacher Eligibility Test, West Bengal TET / WBTET, MPTET / Madhya Pradesh TET, ASSAM TET / ATET
, UTET / Uttrakhand TET , GTET / Gujarat TET , TNTET / Tamilnadu TET , APTET / Andhra Pradesh TET , CGTET / Chattisgarh TET, HPTET / Himachal Pradesh TET
Rajasthan TET / RTET, BETET / Bihar TET, PSTET / Punjab State Teacher Eligibility Test, West Bengal TET / WBTET, MPTET / Madhya Pradesh TET, ASSAM TET / ATET
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